नर्सरी और खेत से कमाई का अवसर
प्रदेश के किसानों की खुशहाली के लिए केन्द्र और राज्य सरकार ने अनूठी योजना की शुरुआत की हैं। इससे किसान आय बढ़ाने में, ही नहीं, और कइयों को रोजगार देने में भी कारगार होंगे। राष्ट्रिय टिकाऊ खेती मिशन के तहत कृषि वानिकी सब-मिशन योजना(Agroforestry) को प्रदेश में लागु किया गया हैं। इसके तहत किसानों को नर्सरी लगाकर पौधे तैयार करने होंगे। किसान खेत व मेड पर वृक्षारोपण योजना के तहत पौधे लगा सकते हैं। योजना के तहत अनुदान भी दिया जाएगा। इससे न सिर्फ किसान की कमाई होगी, बल्कि मृदा में जैविक तत्वों की बढ़ोत्तरी, मृदा क्षरण में कमी, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने जैसे उद्देश्यों की भी पूर्ति होगी।
कृषि वानिकी सब-मिशन योजना के तहत किसान निजी स्तर पर छोटी, बढ़ी व हाईटेक नर्सरी स्थापित कर सकते हैं। इन नर्सरियों में विभिन्न उन्नत किस्मों की पौध तैयार की जाएगी। हालाँकि, सरकारी स्तर पर भी नर्सरियां तैयार कराई जाएगी। इसके लिए सभी जिलों को लक्ष्य दिए गए हैं। छोटी नर्सरियों पर 10-10 लाख, बढ़ी नर्सरियों पर 13-16 लाख, जबकि हाईटेक नर्सरियों पर 40-40 लाख रूपये की लागत आएगी। किसान चाहें तो अपने खेत में और खेत की मेड पर वृक्षारोपण कर भी योजना का लाभ उठा सकता हैं। किसानों के अलावा कृषि समूह, सहकारी समिति और कृषक उत्पादक संगठन भी योजना का लाभ उठा सकते हैं। इसके तहत हर लाभार्थी को सरकार द्वारा 50 फीसदी तक अनुदान भी दिया जाएगा।
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किसानो को प्रशिक्षण
कृषि वानिकी सब-मिशन योजना के तहत किसानों और कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिसके तहत प्रति प्रशिक्षण एक लाख खर्च किए जाएंगे। किसानों के प्रशिक्षण पर प्रदेश में कुल 45 लाख रूपये, जबकि अधिकारीयों व कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर 25 लाख रूपये खर्च किये जाएंगे।
कृषि वानिकी सब-मिशन योजना से उद्देश्य जो पुरे होंगे
- तैयार पौध या वृक्षों से आय होगी, किसानों की आर्थिक स्थित सुधरेगी।
- वृक्षारोपण को बढ़ावा मिलेगा, वैज्ञानिक तरिके से तैयार होगी उपज
- मिटटी में जैविक तत्वों की बढ़ोतरी होगी, मृदा का क्षरण रुकेगा।
- गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री तैयार होगी, पौध उपलब्धता व उत्पादन बढ़ेगा।
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तीन तरह से मिलेगा मौका
सरकारी-निजी स्तर पर लगाई जाएगी नर्सरियां
निजी स्तर पर नर्सरी लगाने के लिए योजना के तहत कुछ आधारभूत संरचनाए और शर्ते पूरी करनी होगी। छोटी नर्सरी के लिए आधा हेक्टेयर भूमि होनी चाहिए, जिस पर साल में कम से कम 25000 पौधे तैयार करने होंगे। बड़ी नर्सरी के लिए यह मापदंड एक हेक्टेयर भूमि और 50 हजार पौधे रहेगा। हाईटेक नर्सरी आधुनिक तकनीक व प्रणाली आधारित होगी, जहां से सालाना एक लाख पौधे तैयार किये जाएंगे।
खेत की सीमा और मेड पर वृक्षारोपण के जरिए
इसके तहत किसान को खेत की मेड पर कम से कम 50 वृक्षों का पौधरोपण करना जरूरी होगा। पौधों की सार-संभाल चार साल तक की जाएगी, जिसमे गेप फिलिंग भी शामिल होगा। इसमें पौधे की लागत, खाद व उर्वरक, तारबंदी, सिंचाई आदि के आधार पर प्रति पौध इकाई लागत 70 रूपये तक की गई हैं।
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खेत में लगा सकेंगे 100 से 1500 पौधे
कृषि वानिकी सब-मिशन योजना में किसान को खेत में वृक्षों के पौधरोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके तहत किसान कम घनत्व के आधार पर 100-500 पौधे उच्च घनत्व के आधार पर 501 से 1500 पौधे लगाएगा। इसमें लागत का निर्णय ब्लॉक के पौधों की संख्या की आधार पर किया जाएगा।
कृषि वानिकी सब-मिशन योजना के तहत प्रदेश में लक्ष्य (वर्ष 2017-18)
- 30 सरकारी नर्सरियां (10-10 छोटी, बढ़ी, हाईटेक)
- 103 निजी नर्सरियां (66 छोटी, 33 बड़ी व 10 हाईटेक)
- 22,22,850 मेड पर वृक्षारोपण
- 945 हैक. कृषि भूमि पर वृक्षारोपण
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कृषि वानिकी सब-मिशन योजना में ये पौधे लगा सकेंगे
फलदार पौधे
आम, जामुन, बेलपत्र, अमरुद, लसोड़ा, शहतूत, अनार, आंवला, गुन्दा, गुंदी, इमली, निम्बू, महुआ, करोंदा, पिपला, बेर, सीताफल, खिरनी आदि।
छायादार पौधे
बड़-पीपल, सहजन, नीम, करंज, सिरस, कदम्ब, महुआ, अर्जुन, कोहड़ा आदि।
इमरती लकड़ी वाले
शीशम, बबूल, रोहिड़ा, सिरस, सागवान, बांस, पॉपलर आदि।
जलाऊ लकड़ी देने वाले
देशी बबूल, खेजड़ी, जंगल जलेबी, चुरेल आदि।
चारा उत्पादक वृक्षों में
खेजड़ी, अरडू, सहजन, नीम, पीपल, बेर की झाड़ी, गुंदी, बकाइन आदि।
अन्य महत्व के वृक्ष
चंदन, कुमठा, बहेड़ा, तेन्दु, अमलतार, कचनार, गुलमोहर, सिल्वर ओक व अशोक आदि।
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इनका कहना
प्रदेश में राष्ट्रीय टिकाऊ खेती मिशन के तहत कृषि वानिकी सब-मिशन योजना के नाम से योजना को लॉन्च किया गया हैं। इसके तहत किसान अनुदान पर छोटी, बड़ी व हाईटेक नर्सरियां स्थापित कर सकता हैं। इसके अलावा किसान खेत में छायादार, फलदार, इमरती, जलाऊ लकड़ी और चारे देने वाले पौधे लगा सकता हैं। सरकारी स्तर पर झुंझुनू जिले में एक बड़ी नर्सरी, जबकि निजी स्तर पर दो छोटी एवं एक हाईटेक नर्सरी स्थापित करने के लक्ष्य मिला हैं।
डॉ. विजयपाल कस्वां, सहायक निदेशक कृषि झुंझुनू
स्रोत :-
एग्रोटेक
राजस्थान पत्रिका
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